बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र
प्रश्न- इक्ष्वाकु युगीन कला के अन्तर्गत नागार्जुन कोंडा का स्तूप के विषय में बताइए।
उत्तर -
नागार्जुन-कोंडा (300 ई. पू.) - यह स्तूप अमरावती से करीब 95 कि.मी. उत्तर में गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के बांये तट पर स्थित है जो तृतीय शताब्दी में बनाया गया। गुंटूर जिले में ही नागार्जुन कोंडा नामक एक स्थान से स्तूप के अवशेष मिले। यहाँ पर भी सातवाहनों ने एक उत्कृष्ट स्तूप की रचना कराई थी। नागार्जुन पहाड़ी पर बनाये जाने के कारण उसका नाम नागार्जुन-कोंडा स्तूप बना। इक्ष्वाकु शासक चान्तिमूल की भगिनी चातसिकी ने माठरी के पुत्र सिरिवीर पुरिसदत्त के छठे राज्य वर्ष में नागार्जुन कोण्ड महास्तूप का और अट्ठारहवें राज्य वर्ष में 'चैत्य गृह और विहार' का निर्माण कराया था। नागार्जुन कोंडा के अवशेषों का पता जनसामान्य को सर्वप्रथम सन् 1926 ई. में चला। सन् 1927 ई. से 1959 के मध्य लॉग हर्स्ट द्वारा कराये गये उत्खनन कार्य से उत्कीर्ण शिलापटों सहित बौद्ध मूर्तियाँ, मृणमूर्तियाँ, हारिति, कार्तिकेय और शिव के मन्दिर, सिक्के, अस्थि अवशेष एवं स्तूप विहार दूयस्त्र चैत्य प्राप्त हुए। इन्हें पहाड़ी स्थित संग्रहालय में संरक्षित कर प्रदर्शित किया गया। नागार्जुन कोण्ड के स्तूप उत्खनन से ज्ञात हुआ कि इसका निर्माण अलग पद्धति से किया गया। इस स्तूप का अर्द्धव्यास 120 फीट था। नागार्जुन- कोण्ड के महाचैत्य (स्तूप) का आधार, अंड और आयक चबूतरों पर अमरावती के समान उत्कीर्ण शिलापट्ट लगाकर सजाया गया था। मूर्तिकला विषयक सामग्री शिलापट्टों के अंकन के रूप में ज्ञात है कि इस पर बुद्ध के जीवन दृश्यों तथा प्रमुख घटनाओं का विस्तृत आंकलन किया गया था। प्रमुख विषयों के अन्तर्गत माया का स्वप्न, हस्ति के रूप में बोधिसत्व का प्रकट होना, महाभिमिष्क्रमण, स्वर्ण में बोधिसत्व की चूड़ा पूजा, मारविजय, जन्म के साथ सात डग भरना, संबोधित, प्रथम उपदेश इत्यादि।
नागार्जुन-कोण्डा के इस स्तूप को तीन सौ. ई. पू. में इक्ष्वाकुवंशीय राजाओं ने हल्के रंग के मुलायम चूना पत्थरों से जो स्तूप बनावाये थे उनके अलंकरण और कलाकृतियाँ आध्यात्मिकता के साथ-साथ कोमल भावनाओं के सम्मिश्रण से उत्कीर्ण की गई हैं। यद्यपि यहाँ पर मूर्ति शिल्प अमरावती के समान उत्कृष्टता नहीं रखता है, फिर भी यहाँ पर भी मूर्तिफलक प्राप्त हुए हैं। आकृतियों का संयोजन उचित ढंग से किया गया है और संयोजनों में सरल वर्णनात्मकता की प्रकृति स्पष्ट दृष्टव्य है।
जातक कथाओं का अंकन - जातक कथाओं के अनेक अंकन नागार्जन कोण्डा की कला में व्यक्त हैं। जिसमें दशरथ जातक, सिवि जातक, दीधिति कोसल जातक, महापदुम जातक, चंपेय जातक, वेस्सान्तर जातक, ससजात, मतक भट्ट जातक, मान्धातु जातक, महाहंस जातक, इत्यादि। बुद्ध की करीब एक दर्जन मूर्तियाँ यहाँ प्राप्त हुईं। ये मूर्तियाँ ध्यान और व्याख्यान मुद्राओं में हैं। ब्राह्मण धर्म से सम्बन्धित मूर्तियों में कार्तिकेय के साथ उनका मयूर वाहन, शिवलिंग, हरिति, देवसेना इत्यादि। वृक्षका, विद्याधर, मालाधारक देव, यक्ष-यक्षिणी व मिथुन आकृतियाँ अन्य प्रमुख आकृतियाँ बनाई गई हैं।
यहाँ पर सुन्दर प्रतीकों के चिह्न एवं अन्य अलंकरणों के रूप दृष्टव्य हैं। जैसे - त्रिरत्न, पद्य, कटकारि; स्वास्तिक, पूर्णघट इत्यादि। पशु आकृति में व्याघ्र, सिंह, गज, वृषभ, मृग पंक्तियाँ, मकर तथा हंस आदि का मनोहारी रूप निर्मित किया गया। इस शैली में विदेशी लक्षण विद्यमान हैं। अमरावती व नागार्जुन - कोण्डा की मूर्तियों और अलंकरणों में कुछ रोमन प्रभाव है। ऐतिहासिक दृष्टि से दृष्टव्य है कि आंध्रों ने अपने दूत रोम के सम्राट के यहाँ भेजे थे। इसके साथ ही यह ज्ञात होता है कि उस समय दक्षिण भारत का रोम से समुद्र द्वारा बहुत घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध था।
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